रायपुर- वरिष्ठ आदिवासी नेता नंदकुमार साय के कांग्रेस से इस्तीफा देने पर छत्तीसगढ़ प्रदेश भाजपा महामंत्री केदार कश्यप का बयान सामने आया है. केदार कश्यप ने कहा कि, तोड़ने में भरोसा करने वाली कांग्रेस खुद टूट रही है. कांग्रेस में भले लोगों का कोई काम नहीं है. महंत रामसुंदर दास जी के साथ कांग्रेस ने राजनीति की. पूरे प्रदेश में सर्वाधिक अंतर से हार के बाद उन्हें कांग्रेस के भीतर का घटिया खेल समझ में आ गया तो उन्होंने कांग्रेस त्याग दी. कई और वरिष्ठ कांग्रेसियों ने कांग्रेस छोड़ दी. अब वरिष्ठ आदिवासी नेता नंदकुमार साय ने भी कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया है. यह कांग्रेस की अंतर्कथा का प्रमाण है.
आगे केदार कश्यप ने कहा, नंदकुमार साय जी को भूपेश बघेल कांग्रेस में ले तो गए, लेकिन उन्हें यथोचित सम्मान नहीं दिया. भूपेश बघेल वरिष्ठ आदिवासी नेता नंदकुमार साय को मोहरे की तरह इस्तेमाल करना चाहते थे, लेकिन चुनाव में आदिवासी समाज ने आदिवासी विरोधी कांग्रेस को सबक सिखा दिया. आदिवासी समाज का सम्मान केवल भाजपा ही कर सकती है. हमने देश को आदिवासी महिला राष्ट्रपति दिया और छत्तीसगढ़ में विष्णुदेव साय के रूप में आदिवासी मुख्यमंत्री दिया. कांग्रेस आदिवासी नेताओं का सिर्फ दोहन करने का काम करती है. आदिवासी शोषण कांग्रेस का इतिहास रहा है. चंद महीनों में नंदकुमार साय का कांग्रेस से मोह भंग हो गया. वे भूपेश बघेल और कांग्रेस की असलियत से परिचित हो गए हैं.
केदार कश्यप ने आगे कहा कि, कुछ कांग्रेसी कांग्रेस छोड़ रहे हैं. कुछ जिम्मेदार कांग्रेसी कांग्रेस पर संगठन में भी भ्रष्टाचार के आरोप लगा रहे हैं. कांग्रेस में चली कारस्तानियों के खिलाफ आवाज उठाने वाले कुछ कांग्रेसियों का कांग्रेस निष्कासन कर रही है. दरअसल कांग्रेस खुदकुशी कर रही है. आत्मघाती कदम उठा रही है.
केदार कश्यप ने प्रदेश में हार के बाद कांग्रेस में मचे हाहाकार पर कटाक्ष करते हुए कहा कि, जिन लोगों को अपनी हार की समीक्षा करके उससे सबक लेना था, वे कांग्रेसी आपसी जूतमपैजार में लगे हैं. इन दिनों आरोप-प्रत्यारोप से लेकर इस्तीफों और निष्कासन का जैसा दौर कांग्रेस में चल रहा है, उससे जाहिर है कि कांग्रेस जनादेश के मर्म को समझने तैयार ही नहीं है.
केदार कश्यप ने आगे कहा कि, विधानसभा चुनाव में हार के बाद जिस तरह कांग्रेस के पदाधिकारियों पर गंभीर टिप्पणियां की जा रही हैं. पैसे लेकर पदों की रेवड़ी बांटने से लेकर चुनाव की टिकट बेचने तक के आरोप लगाए जा रहे हैं, उससे कांग्रेस की राजनीतिक संस्कृति में रचे-बसे भ्रष्टाचार की पोल खुल गई है. पूर्व विधायकों महंत रामसुंदर दास और मोहितराम केरकेट्टा के इस्तीफों ने कांग्रेस के अंदरखाने रचे गए राजनीतिक षड्यंत्रों को भी प्रमाणित किया है. प्रदेश कांग्रेस उपाध्यक्ष चुन्नीलाल साहू ने इस्तीफा देकर कई सवाल खड़े कर दिए हैं. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज को चुनाव लड़ाने और रामसुंदर दास व छाया वर्मा के क्षेत्र में बदलाव के षड्यंत्रों के आरोपों के दाग कांग्रेस कैसे धो पाएगी? अब वरिष्ठ आदिवासी नेता नंदकुमार साय का कांग्रेस छोड़ना इसी श्रृंखला की ताजी कड़ी है.
केदार कश्यप ने कहा कि, भाजपा शुरू से कहती रही कि कांग्रेस की भूपेश सरकार ने छत्तीसगढ़ को कांग्रेस का एटीएम बना रखा था. अब यही बात कांग्रेस के एक महामंत्री ने केंद्रीय नेतृत्व को भेजी अपनी एक चिठ्ठी में भी कही है कि ‘दिल्ली के लिए’ छत्तीसगढ़ मौज-मस्ती का अड्डा बन गया था. कांग्रेस की भूपेश सरकार ने छत्तीसगढ़ियावाद के नाम पर पाखंड तो खूब किया लेकिन छत्तीसगढ़ से बाहर अन्य प्रदेशों के आयातित नेताओं को पद बांटकर छत्तीसगढ़ की राजनीतिक क्षमताओं का खुला अपमान किया. पूरे पांच साल के शासनकाल में कांग्रेस के कार्यकर्ता हर तरह से अपमानित हो रहे थे, अब उनका आक्रोश व्यक्त हो रहा है. ये सारे तथ्य अब कांग्रेस के लोग ही जग जाहिर कर रहे हैं कि कांग्रेस में किस तरह पदों की रेवड़ियां बांटी जा रही थीं! कांग्रेस को अब आत्ममंथन करने की जरूरत है, लेकिन वह यह करने के बजाय अब भी अपने नेताओं के आक्रोश व आवाज को दबाने के अलोकतांत्रिक रवैए का परिचय दे रही है. नतीजा सामने है कि, कांग्रेस में पतझड़ चल रही है. यह पार्टी भविष्य में केवल ठूंठ में बदल जाएगी.